एक वार्डबॉय सोहनलाल भरथा वाल्मीकि उसी अस्पताल में अरुणा के अंतर्गत काम करता था. अरुणा एक नियम कायदे वाली लड़की थी जिसे की अनुशाशनहीनता बिलकुल भी पसंद नहीं थी. सोहनलाल के काम करने के ढंग की वजह से उसकी और अरुणा की अक्सर लड़ाई होती रहती थी मगर किसी ने भी ये नहीं सोचा था की ये लड़ाई एक दिन बदले का रूप ले लेगी और सोहनलाल को एक ऐसा कदम उठाने को प्रेरित कर देगी जिसकी गूँज आने वाले दशकों तक सुने देगी.
शाम का करीब 6 बजा था जब की अरुणा की रोज़ की शिफ्ट ख़तम हुई थी. अरुणा को अपने कपडे बदलने थे और इसके लिए वो अस्पताल के बेसमेंट में उस जगह पहुची जहाँ कुत्तों पर रिसर्च की प्रयोगशाला थी. वैसे वो जगह कपडे बदलने की नहीं थी मगर चूँकि नर्स रूम कुछ दूरी पे था, सो अरुणा ने वहीँ कपडे बदलने की सोची. सोहनलाल एक लम्बे समय से ऐसे ही किसी मौके की फ़िराक में था और उस दिन उसे वो मौका मिल गया. उसने पूरे समय अरुणा का पीछा किया और मौका पाते ही पहले तो उसने अरुणा की साथ अप्राकृतिक सेक्स किया और उसके बाद अरुणा के गले को कुत्तों को बाँधने वाली ज़ंजीर से मरोड़ दिया और उसके बाद ये सोच कर वहां से निकल गया की अरुणा मर गई होगी.
शाम 6 बजे के इस हमले के बाद से सुबह अगली शिफ्ट शुरू होने तक अरुणा वहीँ पड़ी रही और किसी को कानो-कान खबर भी नहीं हुई. अरुणा मरी तो नहीं थी मगर उसका दिमाग मर चुका था. सोहनलाल ने जिस बेरहमी से उसकी गर्दन कुत्ते की ज़ंजीर से दबी थी उससे उसके दिमाग को ऑक्सीजन पहुचने वाली नसें फट गई और जब तक अरुणा को वहां पाया गया, बहुत देर हो चुकी थी.
अरुणा पर हमला करने वाले सोहनलाल को अरुणा के गहने और घडी चुराने ने इल्जाम में सात साल की सजा हुई और उसके ऊपर कोई भी रेप का चार्ज नहीं लगा क्यूंकि उसके साथ रेप होने का कोई भी सबूत मेडिकल रिपोर्ट में नहीं मिला था क्युकी सोहनलाल ने उसके अप्राकृतिक सेक्स किया था.
अस्पताल की तरफ से पुलिस में नर्स को लूटने के इरादे से हमले की रिपोर्ट दर्ज कराइ गई. पुलिस के रिकॉर्ड में ये एक हत्या का प्रयास और लूट के केस के रूप में दर्ज हुआ, न की रेप केस के रूप में. अप्राकृतिक सेक्स की बात को अस्पताल के तत्कालीन डीन के कहने पर छिपाया गया जिससे की अस्पताल की साख पे बट्टा न लगे. अस्पताल का सीनियर स्टाफ मेम्बर ये भी चाहते थे की डॉ संदीप और अरुणा के इस जोड़े को सोशल बायकाट न झेलना पड़े. वो जानते थे अरुणा का जिंदा बचने उम्मीद करीब करीब न के बरराबर है, मगर फिर भी अगर किसी संयोग से अरुणा बच गई तो ये धब्बा पूरी जिंदगी उनका पीछा नहीं छोड़ेगा. वो एक ऐसी उम्मीद में थे जो की नामुमकिन सी थी की अरुणा को अपनी पहले वाली जिंदगी फिर से मिलेगी.
सोहनलाल को सात साल की सजा हुई और उसके बाद सुना जाता है की उसमे अपना नाम बदल लिया और शहर भी छोड़ दिया और उसने किसी और शहर में किसी अस्पताल में वार्डबॉय की नौकरी कर ली. अरुणा पहले से ही एक बहुत ही गरीब परिवार से थी और इस हादसे के के बाद उन्होंने अरुणा का बोझ उठाना वाजिब नहीं समझा और अरुणा से खुद को दूर कर लिया.
डॉ संदीप ने चार साल तक अरुणा के ठीक होने का इंतज़ार किया और उसके बाद फॅमिली प्रेशर के चलते शादी कर ली. डॉ संदीप अपनी शादी के एक दिन पहले अरुणा से मिलने भी आये और उसे आखिरी बार गले से लगाया और ये कह कर चले गए की अब वो उससे मिलने कभी नहीं आयेंगे.
दिन, महीने, साल बीतेते गए. अस्पताल का स्टाफ एक के बाद एक रिटायर होता गया और नया स्टाफ आता गया. उसी अस्पताल के एक कोने में अरुणा अभी भी लेती हुई थी जो की साठ साल से ऊपर की हो गई थी. ठीक उसी पोजीशन में जैसे वो बरसों पहले थी. अब उसके दांत भी गिर गए थे और उसको पीसा हुआ खाना दिया जाता था. उसकी प्रतिक्रिया में कुछ इजाफा हुआ था और उसके खाने का टेस्ट वही था.
1973 से 2015 में अपनी मृत्यु तक अरुणा इसी अवस्था में रही. अरुणा की ये करुण कहानी 2010 में पूरी दुनिया के सामने तब आई जब 17 दिसम्बर, 2010 में एक्टिविस्ट, जर्नलिस्ट पिंकी वीरानी ने सुप्रीम कोर्ट में अरुणा की सालों से चली आ रही हालत को देखते हुए इच्छामृत्यु के लिए अर्जी दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट में 24 जनवरी को एक मेडिकल पैनल का गठन किया जिसके तहत अरुणा की दशा को देखा जाना तय किया गया. इस पैनल ने ये निष्कर्ष निकला की अरुणा की दशा लगभग पूरी तरह से स्थिर है. सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च, 2011 को एतिहासिक फैसला सुनाते हुए पिंकी वीरानी की इस अर्जी को ख़ारिज कर दिया. एडवोकेट पिंकी वीरानी ने 1998 में अरुणा पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम था अरुणाज़ स्टोरी (Aruna's Story).
अस्पताल की नर्स, जो की अरुणा की देखभाल करती थी उन्होंने कोर्ट के इस फैसले को एक जीत की तरह व्यक्त किया. उनके अनुसार ये अरुणा का पुनर्जन्म था और उन्होंने अस्पताल में मिठाई और केक का वितरण भी किया. हॉस्पिटल स्टाफ के अनुसार अरुणा एक छोटे बच्चे की तरह है और वो किसी के लिए कोई भी समस्या नहीं पैदा करती है. अंतर सिर्फ इतना है की वो भी उनकी उम्र की है.
अरुणा की मृत्यु के कुछ दिन पहले से उसको सांस से समस्या होनी शुरू हो गई थी. उसको आईसीयू में भारती किया गया और वेंटीलेटर पे रखा गया. 18 मई, 2015 को उसकी मृत्यु हो गई. उसका दाहसंस्कार अस्पताल की नर्सों और स्टाफ द्वारा किया गया.
अरुणा की मृत्यु की खबर मीडिया द्वारा पूरे देश में आग की तरह फ़ैल चुकी थी और ये खबर अरुणा के परिवार वालों तक भी पहुची जिन्होंने अरुणा की हालत को देखते हुए उसे उसी समय त्याग दिया था. अरुणा के घरवाले उसकी मृत्यु की खबर पाने के बाद अस्पताल में इकठ्ठा हुए जिनको नर्सों का विरोध झेलना पड़ा जिन्होंने अरुणा को दशकों से अपने बच्चे की तरह पाला था. अरुणा के अंतिम संस्कार के लिए नर्सों ने चंदे के रूप में दस हज़ार रूपए इकठ्ठा किये और ये कहा की इतने सालों से वो ही अरुणा का परिवार हैं सो वही उसका अंतिम संस्कार भी करेंगे मगर एक बीच का रास्ता निकालते हुए अरुणा का अंतिम संस्कार गौड़ सारस्वत ब्राम्हण ट्रेडिशन के अनुसार किया गया.
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