निठारी सीरियल किलिंग्स
Nithari Serial Killings
2006 से पहले किसी ने शायद ही कभी निठारी गाँव का नाम सुना हो. मैंने भी नहीं सुना था. मगर 2006 ने निठारी में जो कुछ हुआ उसके बाद से निठारी शब्द ही एक सनसनी सी मचा जाता है. निठारी नॉएडा या गौतम बुद्ध नगर का एक छोटा सा गाँव है जो की नॉएडा के सेक्टर 31 से बिलकुल लगा हुआ है. इसी सेक्टर 31 के बंगला नंबर डी-5 में हुए वीभत्स हादसों की वजह से निठारी गाँव को एक अलग ही पहचान मिल गई. एक ऐसी पहचान जो सदियों तक चाह कर भी भुलाई न जा सकेगी. 2006 के हादसे ही निठारी की पहचान नहीं हैं, इससे दस साल पहले भी निठारी का नाम मीडिया में आया था मगर तब मीडिया की पहुच उतनी ज्यादा नहीं थी की हर आदमी तक वो खबर पहुच पाए. दस साल पहले निठारी में नकली शराब के व्यापार ने दर्जन भर लोगों की जाने ली थी. मृतकों के परिजनों को वो हादसे अब भी याद हैं, मगर अब निठारी शब्द ज़हन में आते ही छोटे मासूम बच्चों की चीख पुकार सुने देती है. आँखों के सामने खौफनाक दृश्य चमक उठता है की किस तरह से उन दो दरिंदों ने मासूमो को कुकर्म करने के बाद मौत के घाट उतारा होगा और उनकी कटी फटी लाशों को नाले में बहा दिया होगा.
असली हत्यारा कौन?
निठारी काण्ड का मुख्य आरोपी सुरिंदर कोली घोषित किया गया. तो क्या इन हत्याओं के पीछे उसके मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर का कोई हाथ नहीं था? या उसकी पहुच इतनी ज्यादा थी की वो इन सब आरोपों से बच गया! इस पोस्ट में हमारा मकसद इन्ही तत्यों पर प्रकाश डालने का है की क्या वाकई में मोनिंदर सिंह पंढेर बेक़सूर था. मोनिंदर सिंह चंडीगढ़ के एक रसूक वाले परिवार से सम्बन्ध रखता है. वो पढाई में भी काफी अच्छा था और उसने आई.ए.एस की लिखित परीक्षा भी पास की थी मगर उसके बाद क्या हुआ ये पता नहीं चल पाया. मोनिंदर सिंह करोड़ों की प्रॉपर्टी का मालिक है. वो जेसीबी की कंपनी में बतौर सीनियर अधिकारी कार्यरत था जिसके कारण उसे चंडीगढ़ से नॉएडा शिफ्ट होना पड़ा क्यों की उसकी कंपनी नॉएडा में थी. नॉएडा के सेक्टर 31 में उसने ही ये खुनी कोठी, कोठी नंबर-5 खरीदी. सुरिंदर कोली उसके परिवार का चंडीगढ़ से ताल्लुक रखने वाला नौकर था जिसे घर की देखभाल और कामकाज के लिए वो नॉएडा ले आया था. चूंकि मोनिदर सिंह ज़्यादातर काम के सिलसिले में बहार रहता था, मोनिंदर सिंह अकेले घर की देखभाल करता था.मोनिंदर सिंह खाना बनाने में एक्सपर्ट था, खासकर नॉन-वेज बनाने में. मोनिंदर सिंह ने उसको बंगले के ऊपर का एक अकेला कमरा रहने के लिए दे रखा था.
पायल और अन्य बच्चों का गायब होना
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इन हत्याओं का सिलसिला डेढ़ साल पहले ही शुरू हो चूका था जो की एक कॉलगर्ल पायल के गायब होने के बाद प्रकाश में आया. कोठी डी-5 निठारी गाँव से लगी हुई थी और एक पानी की टंकी जो की निठारी गाँव में आती थी और इस कोठी के ठीक पीछे थी, उसके पास से बच्चों के गायब होने की खबर से गाँव वालों में पहले से ही सनसनी थी. लगातार कुछ बच्चों के गायब होने के बाद से लोग इस टंकी को भूतिया टंकी मानने लगे थे. गाँव वालों ने इन वारदातों की खबर पुलिस को दी थी मगर पुलिस ये गुत्थी सुलझा नहीं पाई. पुलिस को शक था की अगवा किये गए बच्चों की तस्करी की जा रही है और इनको शहर या देश से बाहर भेजा जा रहा होगा. इसके लिए पुलिस ने ज़िपनेट की सहायता से मानव तस्करी पता करने की कोशिश भी करी मगर उनको कोई सफलता नहीं मिली. सफलता मिलती भी कैसे, जिन तत्यों की तलाश पुलिस पूरे देश में कर रही थी, वो सच्चाई तो उसी पानी की टंकी से कुछ कदम दूर कोठी नंबर डी-5 में थी.
कैसे सुलझी गुत्थी?
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पुलिस के सामने इन घटनाओ के तार तब जुड़ने शुरू हुए जब नन्दलाल नाम का एक आदमी निठारी पुलिस थाणे में अपनी 20 साल की बेटी पायल के गायब हो जाने की खबर ले कर आया. नन्दलाल निठारी का निवासी था और उसकी पहली रिपोर्ट के अनुसार उसकी बेटी पायल को कोठी नंबर डी-5 से इंटरव्यू के लिए एक कॉल आया था. उसकी बेटी पायल के इंटरव्यू के लिए जाने के बाद से उसकी कोई खबर उसके पिता को नहीं मिली यहाँ तक की पायल का फ़ोन भी कभी कनेक्ट नहीं हो पाया. नन्दलाल की रिपोर्ट पर पुलिस कोठी नंबर डी-5 में गई जहाँ उस समय केवल घर का नौकर सुरिंदर कोली था. सुरिंदर कोली ने साफ़ साफ़ मना किया की पायल नाम की कोई भी लड़की यहाँ नहीं आई है और जब मालिक ही घर पर नहीं हैं तो इंटरव्यू के लिए कोई क्यों कॉल करेगा.
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Aarti, Dipali, Ganga Singh, Gunjan Sharma, Harsh, Kalidas,
Krishnarai, Kumari Binali, Manisha and Rachna |
नंदलाल के बार बार प्रेशर डालने पर पुलिस ने पायल के मोबाइल रिकॉर्ड खंगालने शुरू किये जिनकी वजह से आख़िरकार उन्हें ये पता चला की पायल की कोठी डी-5 में अक्सर किसी से बात होती रहती थी. ये बात पुलिस के पल्ले नहीं पड़ रही थी की कोई इंटरव्यू के लिए बार बार क्यों बुलाएगा पायल को. इसी शक के चलते पुलिस ने मोनिंदर सिंह पंढेर को निठारी बुलाया और सच जानने की कोशिश की. मोनिंदर सिंह पंढेर ने ये कबूला की वो पायल को जानता है. पायल उसकी रखैल है और वो अक्सर पायल को अपने पास बुलाता है और इसके लिए वो पायल के पिता नन्दलाल को रुपये देता है. पुलिस के सामने तब ये खुलासा हुआ की पायल एक कॉलगर्ल है जो की अपने पिता के इशारों पर काम करती है. अब पुलिस को ये तो समझ आगया था की पायल की गुमशुदगी के पीछे डी-5 का कहीं न कहीं से हाथ तो है ही.
किस तरह यूंपी पुलिस ने उठाया फायदा
इतनी खबर पुलिस के सामने आने के बाद पुलिस के हाथ भी बटेर लग गई थी. चूँकि अभी तक मामला पायल की गुमशुदगी तक ही था सो थाना प्रभारी इसका फायदा उठा रहे थे. मोनिंदर सिंह पंढेर का सम्बन्ध कई कॉलगर्ल से था और इस बहाने पुलिस पंढेर को ब्लैकमेल करने लगी की अगर बात बहार पहुची तो बहुत बदनामी होगी, कहीं मुह दिखने लायक नहीं रहोगे..... पंढेर को भी ये डर सता रहा था की अगर ये सब बात खुलती है तो बदनामी तो सच में बहुत होगी, इसी बात का बहाना लेकर केस को दबाने के लिए पुलिस ने पंढेर से काफी रुपये ऐंठती रही. इस रिश्वत का खुलासा केस की सीबीआई रिपोर्ट में भी है. यूपी पुलिस मज़े कर रही थी और वो इस तथ्य से कोसों दूर थी की पायल का हुआ क्या और उन गुमशुदा बच्चों का क्या हुआ.
Part 1

Part 2
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Crime Patrol Version of the case |
दोबारा केस में आई जान
पायल के गायब हुए मोबाइल की वजह से केस में दोबारा जान आई जब उस मोबाइल का आईएम्ईआई नंबर जो की सर्विलिएंस पर डाला गया था, किसी मोबाइल नंबर पर एक्टिवेट हो गया. पुलिस ने जब उस नंबर पर कॉल किया तो पता चला की इस मोबाइल का इस्तेमाल संजीव गुर्जर नाम का एक व्यक्ति कर रहा है. पुलिस ने संजीव को हिरासत में लिया ये सोच कर की पायल का कातिल पकड़ा गया, मगर संजीव ने ये बताया की ये मोबाइल उसे एक ऑटो वाले 'सतलरे' ने दिया है जिसके ऑटो में कोई आदमी ये मोबाइल गलती से छोड़ गया था. सतलरे से पूछने पर पता चला की पिछले महीने एक आदमी उसके ऑटो में बैठ कर नॉएडा सेक्टर 26 से निठारी सेक्टर 31 डी-5 तक आया था, उसी से ये मोबाइल ऑटो पर छुट गया था जो की उसने उठा लिया.पुलिस के लिए ये अभी भी एक अनजान गुत्थी थी की वो आदमी कौन था जो निठारी आया था और उसके पास पायल का मोबाइल था. पायल के फ़ोन में यूज़ हुए सिमकार्ड की जाँच करी गई जिसमे ये पाया गया की 1 नवम्बर 2006 से 27 नवम्बर 2006 तक पायल के मोबाइल में एक नंबर 9871XXXXXX का इस्तेमाल किया गया जो की सुरिंदर कोली के नाम से रजिस्टर्ड था. पुलिस के लिए निठारी जैसे घने इलाके में ये ढूंढ पाना बहुत मुश्किल था की ये सुरिंदर कोली है कौन. हुआ भी यही मगर पुलिस की नज़र निठारी के एक लैंडलाइन नंबर पर की गई बातचीत पर टिक गई. कॉल करने पर फ़ोन पंढेर के ड्राईवर ने रिसीव किया. पुलिस को लगा की यही सुरिंदर कोली है मगर उसने बताया की सुरिंदर अपने घर अल्मोड़ा गया है. निठारी का पता पूछने पर उसने बताया कोठी डी-5, सेक्टर 31. पुलिस के पास अब पुख्ता सुबूत थे की पायल इसी कोठी से गायब हुई है. एक तरफ पहले सुरिंदर कोली पायल की गुमशुदगी की बात नकार रहा था और दूसरी तरफ पंढेर ये कह रहा था की जब पायल गायब हुई तब वो नॉएडा में था ही नहीं तो वो पायल को कोठी पर क्यों बुलाएगा. मगर पुलिस के अनुसार इतना तो तय था की पायल डी-5 में आने के बाद ही गायब हुई है. चूँकि सुरिंदर शहर से निकल चुका था, पुलिस ने मोनिंदर सिंह को बोला की सुरिंदर तक पहुचने में वो पुलिस की मदद करे.
किसने करी ये सारी हत्याएं?
ज़्यादातर लोगों का मानना है की सुरिंदर और मोनिंदर दोनों मिले हुए थे मगर ऐसा है नहीं. सुरिंदर तक पुलिस को पहुचाने में मुख्य हाथ मोनिंदर सिंह पंढेर का ही था. मोनिंदर सिंह की मदद से सुरिंदर सिंह हत्थे तो चढ़ गया मगर उसके मुह से एक शब्द नहीं फूट रहा था. वो पायल के बारे में कुछ बता की नहीं रहा था. उससे सच उगलवाने के लिए पुलिस ने बहुत मशक्कत की, थर्ड डिग्री भी डी मगर उसने कुछ नहीं उगला. पुलिस ने मुख्य रूप से मुर्दों से भी उगलवाने वाले दरोगाओं को बुलाया तब जाकर सुरिंदर ने कुछ उगलना शुरू किया.
"हाँ मैंने ही पायल को मारा था. वो अक्सर मोनिंदर सिंह के पास आती थी. उसको मैंने कई बार उत्तेजक हालत में देखा था. वो मुझसे भी खूब बातचीत करती थी. मेरा भी मन था की मै उसके साथ सेक्स करू और इसीलिए मैंने उसे उस दिन कोठी में बुलाया था. मैंने उसे 500 रुपये देकर अपने साथ सेक्स करने को बोला मगर वो नहीं मानी. उसके अनुसार ये बहुत छोटी रकम थी. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. मैंने उसे चाय पीने के बहाने बैठने को कहा. जब वो बैठ गई तो मैंने उसके पीछे से जाकर उसका गला घोटना शुरू कर दिया. उसने विरोध करना चाह मगर मेरे खौफ के आगे आखिरकार उसने दम तोड़ दिया. उसके मरने के बार मैंने उसके साथ सेक्स किया. वो बहुत बड़ी थी, इसलिए मैंने उसके तीन टुकड़े लिए और कोठी के पोछे फेक दिया और उसका मोबाइल अपने पास रख लिया"
कोठी के पीछे नर कंकालों का मिलना
उसकी रात पुलिस ने पंढेर की कोठी की तलाशी ली जिसके दौरान उन्हें पायल की सैंडल मिली और कुछ मांस के टुकड़े भी मिले.गाँव वालों को इस बात की भनक लग गई थी की इस कोठी में पुलिस किसी चीज की तलाश में जुट चुकी है. हालाँकि पुलिस को ये अंदाज़ा नहीं थे की उनकी पायल की लाश की तलाशी उनको कहीं और लेकर जाएगी, मगर गाँव वालों को लग गया था की अगर कोठी की पीछे लाश हो सकती है तो फिर कुछ और भी हो सकता है.
ये यूपी पुलिस की बहुत बड़ी चूक थी, जिस काम को उन्होंने टाला, वो काम वहां के रेजिडेंट वेलफेयर कमेटी के प्रेसिडेंट आर. सी. मिश्रा ने दो गाँव वालों के साथ मिल कर कर डाला. सुबह इन लोगों ने कोठी के पीछे के नाले की खुदाई करनी शुरू कर डी जिसमें उनको एक अपघटित हाथ मिला जिसके बाद उन्होंने इसकी सूचना तुरंत पुलिस को दी.
अब गाँव वालों ने भी पुलिस पर सीधा आरोप लगा दिया की पुलिस इन अमीर लोगों के साथ मिली हुई है और इनके इशारे पर ही इन्होने कभी भी बच्चों के गायब होने का केस सीरियसली नहीं लिया.
क्यों मारा गया निर्दोष बच्चों को? क्या अंगो का व्यापर था ये!
जब सारा किस्सा सामने आ गया उसके बाद पुलिस का काम था इन वजहों को तलाशना, की सुरिंदर और मोनिंदर ने बच्चों की इतनी नृशंस हत्यायें क्यों करी! उसको क्या मिलता था इससे? क्या ये ऑर्गन ट्रेड का मामला था? क्या ये लोग बच्चों के अंगों का व्यापार करते थे? पंढेर के घर पास एक डॉक्टर नवीन चौधरी रहता था जिसके ऊपर पुलिस को काफी समय से शक था की वो किडनी का व्यापार करता है. 1998 के दौरान उसके यहाँ पुलिस का छापा भी पड़ा था मगर कोर्ट ने डॉक्टर को उसी साल दोषमुक्त कर दिया था. पुलिस के शक की सुई उसके ऊपर भी गई की इन बच्चों के अंगो का व्यापार इसके अस्पताल में होता होगा. पुलिस ने इस अस्पताल में छापा भी मारा था मगर उनको जांच में कुछ मिला नहीं.
दुसरे शहर के केस भी खोले गए
पंढेर चूँकि चंडीगढ़ का निवासी था, पुलिस ने उसके चंडीगढ़ घर पर भी छापा मारा. इस बीच उसके बेटे और बीवी को भी इन्टेरोगेट किया गया तो पता चला की पंढेर और उसकी परिवार में माहोल तनावपूर्ण था मगर बाद में ये झूठ साबित हुआ. एक पुलिस ऑफिसर के अनुसार पंढेर का लुधियाना में भी फार्म हाउस था जहाँ उसके आसपास के इलाके से भी बच्चे गायब हुए थे. निठारी केस खुलने के बाद इस केस को भी खोला गया मगर पुलिस को इन केसेज़ और निठारी केस में कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई दिया.
आरोप-प्रत्यारोप और मीडिया में सनसनी'
पुलिस को वेबकैम से कनेक्टेड लैपटॉप भी मिला जिससे ये शक भी पैदा हुआ की ये एक इंटरनेशनल चाइल्ड पोर्नोग्राफी रैकेट भी हो सकता है. पुलिस को कुछ फोटोज मिली जिनमे पंढेर कुछ नग्न बच्चों और विदेशियों के साथ था. ये फोटो पंढेर के पिछले चार विदेश दौरे की थी. ये मना गया की ये फोटोज पंढेर विदेश सप्लाई करता होगा मगर ये तथ्य भी गलत साबित हुआ क्युकी जांच के बाद पता चला की फोटो में जो बच्चे थे, वो पंढेर के पोता/पोती थे और इनका चाइल्ड पोर्नोग्राफी से कोई भी सम्बन्ध नहीं था. लैपटॉप और कैमरा परिवार को वापस दे दिए गया मगर इस दौरान ये पूरा किस्सा मीडिया में बहुत उछाला गया.
दोषियों के ब्रेन मैपिंग, नार्को एनालिसिस एंड पॉलीग्राफ टेस्ट
जनवरी 2007 में इन दोनो के कई सारे मेडिकल टेस्ट्स हुए और पुलिस के अनुसार इन दोनों ने ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट्स में पूरी तरह से सहयोग दिया. सुरिंदर कोली ने इन टेस्ट्स में अपने सारी गुनाह कबूल किये. उसने बताया की एक बच्चे को मारने और दुष्कर्म करने के बाद उसने उसके गुर्दे को निकल के खाया तो उसे बहुत अच्छा लगा. इसके बाद इसने और भी बच्चों के साथ ऐसा किया. उसने ये भी स्वीकार की वो बच्चों के मांस को फ्रिज में भी रखता था. मगर पूरे टेस्ट के दौरान उसने ये भी कहा की वो जो कुछ भी करता था उसका पता पंढेर को नहीं था. उसने ये माना की उसने सारी हत्यांएं गला घोट कर की. हत्या करने के बाद वो लाश के साथ दुष्कर्म करता था फिर अपने बाथरूम में ले जाकर वो लाश के टुकड़े करता था और कोठी के पीछे नाले में फेक देता था. वो अपने मालिक को लड़कियों के साथ अइयाशी करते देख कर उत्तेजित हो जाता था. उसके पास वेश्या बुलाने के इतने पैसे तो होते नहीं थे, सो वो बच्चों को किडनैप कर के उनसे वो कमी पूरी करता था. उसका मुख्य निशाना बच्चियां होती थी मगर कभी अगर वो किसी लड़के को ले आता था तो पता लगने के बाद की वो लड़का है, वो उसकी तुरंत नृशंस हत्या करता था.
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कोली के कुकर्मो में एक पायल ही थी जो की बालिग़ थी. बाकियों बच्चों की उम्र 10 साल या उससे कम थी जिनमे से ज़्यादातर लड़कियां थी. पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट्स में बताया गया की 17 कंकालों में से 11 लड़कियों के थे. नॉएडा के एक सरकारी अस्पताल के मुताबिक कोली ने एक कसी की तरह से हत्यायों को अंजाम दिया था और उसको लाशों को काटने का एक अलग ही तरीका था. एम्स दिल्ली के अनुसार कुल 19 कंकाल पाए गए थे जिनमे से सोलह पूर्ण थे और तीन अर्ध्पूर्ण.
मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली दोषी करार
12 फरवरी, 2009 को गाज़ियाबाद के स्पेशल सेशन कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली को चौदह साल की रिम्पा हालदार के हत्या (8 फरवरी 2005) के जुर्म के दोषी करार दिया जबकि सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में पंढेर को बेक़सूर बताया था.
13 फरवरी, 2009 को कोर्ट ने केस को “रेयरेस्ट ऑफ़ दि रेयर” की श्रेणी में डालकर दोनों दोषियों को मृत्युदंड दिया.
4 मई 2010 को कोर्ट ने कोली को सात वर्षीय आरती प्रसाद की हत्या (25 अक्तूबर, 2006) के जुर्म में दोबारा मृत्युदंड दिया.
27 सितंबर, 2010 को कोर्ट ने कोली को नौ वर्षीया रचना लाल की हत्या (10 अप्रैल 2006) के जुर्म में तीसरा मृत्युदंड दिया.
22 दिसंबर, 2010 को कोर्ट ने कोली को बारह वर्षीय दीपाली सर्कार की हत्या (जून 2006) के जुर्म में चौथा मृत्युदंड दिया.
15 फरवरी, 2011 को कोर्ट ने सभी आरोपों को सही ठहराया.
24 दिसंबर 2012 को कोर्ट ने कोली को पांच वर्षीय छोटी कविता की हत्या (4 जून, 2005) के जुर्म में पांचवा मृत्युदंड दिया.
फरवरी 2011 में कोर्ट ने एक बार फिर सभी आरोपों को सही ठहराते हुए कोली की मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा.
सुरिंदर कोली को मृत्युदंड
जुलाई 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने सुरिंदर कोली की दया याचिका को ख़ारिज कर दिया.
3 सितम्बर 2014 को कोर्ट ने कोली का डेथ वारंट जारी किया और शाम को कोली को गाज़ियाबाद की डासना जेल से शिफ्ट कर के मेरठ जेल भेज दिया गया क्युकी डासना जेल में फांसी पर लटकाने के उचित इन्तजाम नहीं थे.
कोर्ट ने सुरिंदर कोली को 12 सितम्बर को मृत्युदंड देने की घोषणा की मगर कुछ कारणों से इसको 29 अक्टूबर, 2014 को शिफ्ट कर दिया गया.
मोनिंदर सिंह पंढेर का मृत्युदंड माफ़
10 सितम्बर, 2009 को कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर का मृत्युदंड माफ़ कर दिया. चूँकि वो मुख्य आरोपी नहीं था मगर उसको सह आरोपी मन गया. पंढेर का ट्रायल अभी चल रहा है और उसकी मृत्युदंड की सजा को बरक़रार रखा जा सकता है अगर वो किसी भी केस में फिर से आरोपी साबित हुआ. कोर्ट ने पंढेर को उसी दिन रिहा किया जिस दिन कोली को मृत्युदंड की सजा सुनाइ गई.